दिल्ली में बुधवार को संत रविदास गुरुघर को लेकर विरोध प्रदर्शनों के बाद हुई हिंसा के लिए दलित समाज का एक वर्ग भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर को ज़िम्मेदार ठहरा रहा है.
लोग मान रहे हैं कि ये हिंसा चंद्रशेखर के तुग़लकाबाद कूच करने के फ़ैसले का नतीजा है.
दलित नेता से थोड़ी सहानभूति रखनेवाले कह रहे हैं कि चंद्रशेखर हिंदुत्ववादियों के बिछाए जाल में उलझते जा रहे हैं, घोर आलोचक इसे उनकी व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वकांक्षा का नतीजा बता रहे हैं.
चंद्रशेखर आज़ाद और उनके समर्थकों की रामलीला मैदान से तुग़लकाबाद की यात्रा के बीच प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हुईं, कई प्रदर्शनकारियों और पुलिसकर्मयों को चोटें आईं, पुलिस ने लाठीचार्ज किया, आंसू गैस के गोल छोड़े, फ़िलहाल चंद्रशेखर समेत 96 लोग 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में हैं.
दिल्ली डेवलपमेंट ऑथरिटी (डीडीए) ने सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले के बाद राजधानी के तुग़लकाबाद इलाक़े में मौजूद दलितों के आराध्य संत रविदास से जुड़े एक स्थल को ढहा दिया था.
दलित समुदाय इसे 500-600 साल पुरानी ऐतिहासिक धरोहर बताते हैं और इस वजह से इस समाज में भारी रोष है.
पंजाब और हरियाणा के कई शहरों में स्थल को 10 अगस्त को ढहाये जाने पर हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद दलित संगठनों ने 21 अगस्त को दिल्ली में विरोध रैली का आयोजन किया था.
आंदोलन की तैयारियों में शामिल लोगों के मुताबिक़ विरोध प्रदर्शन रैली को रामलीला मैदान में ही समाप्त हो जाना था और तय कार्यक्रम के मुताबिक़ लोग दोपहर बाद तक वहां जमा भी हो गए.
लेकिन फिर चंद्रशेखर और उनके कुछ क़रीबियों ने तुग़लक़ाबाद स्थल जाने का फ़ैसला ले लिया जिसका अंत हिंसा में हुआ.
भीम आर्मी के दिल्ली प्रदेश प्रभारी बीए हिमांशु मंडावली इन आरोपों को ग़लत बताते हैं और कहते हैं कि 'तुग़लक़ाबाद जाने का फ़ैसला समाज की सहमति से लिया गया था, हो सकता है अब सब अपना दामन बचाने की कोशिश में हों.'
रामलीला मैदान में बीबीसी ने चंद्रशेखर से सवाल किया कि रविदास स्थल को फिर से उसी जगह पर बनाने की मांग कोर्ट के फ़ैसले को न मानने जैसा नहीं होगा?
इस सवाल पर चंद्रशेखर ने कहा कि सब कह रहे हैं मंदिर बनाना है, मैं अपने लोगों की बात टाल नहीं सकता और फिर उन्होंने कहा कि वो जहां मंदिर था वहीं मत्था टेकने जा रहे हैं.
चंद्रशेखर ने कहा बीजेपी-आरएसएस ने लोगों को सिखा दिया है कि 'आस्था सर्वोपरि है, और हम अपने मंदिर के लिए संघर्ष करने जा रहे हैं.'
दलित आंदोलन से जुड़े लोग कहते हैं कि मंदिर शब्द और पूजा-अर्चना जैसी बातें कहीं भी दलित आंदोलन के मूल में नहीं और ख़ुद आंबेडकर और रविदास इस तरह की बातों के ख़िलाफ़ रहे हैं.
उनलोगों के मुताबिक़ हिंदुत्ववादी चाहते हैं कि बहुजन समाज भी इसी तरह की शब्दावलियों और आदतों में फंसे जिससे उनके एजेंडे को विस्तार मिल सके.
जाने-माने वरिष्ठ दलित पत्रकार दिलीप मंडल जो इस मसले पर भी ख़ूब लिख रहे हैं, ढहा दिए गए स्थल को रविदास 'गुरुघर' कह रहे हैं, मंदिर नहीं.
सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा जा रहा है: जिस रविदास ने मंदिर और मूर्तिपूजन को नहीं माना, जो शरीर को ही मंदिर मानते रहे आज उन्हीं के चेले उनके मंदिर के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
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